जीवन परिचय
महज 9 वर्ष की बाल्यावस्था में सन 1916 में उनके बाबा श्री बांके बिहारी ने बरेली के नवाबगंज शहर के निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से उनका विवाह कर दिया। विवाह के बाद से उनकी पढाई रुक सी गयी।उनका पारिवारिक जीवन सुखमय ना रहा ।उनको कई कठिन परिस्थियों का सामना करना पड़ा ,बाद में उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से एम ए संस्कृत की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।
साहित्यिक परिचय
महादेवी वर्मा अपने जीवन के प्रारम्भिक काल से ही हिन्दी साहित्य की सेवा में ही जुडी रहीं। तन्होंने गद्य तथा पद्य दोनों क्षेत्रों में ही रचना की है। महादेवी सन 1929 में बौद्ध भिक्षा लेकर बौद्ध भिक्षणी बनाना चाहती थीं।लेकिन गांधी जी के संपर्क में आने की वजह से समाज सेवा में लग गईं। जब महादेवी जी महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य थी तब उनका भेंट प्रयाग में रविंद्र नाथ टैगोर जी से हुआ। इन्होंने भारतीय रचनाकारों को आपस में जोड़ने के लिए अखिल भारतीय साहित्य सम्मलेन का आयोजन किया,और हमारे प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से वाणी मंदिर का शिलायांश भी करवाया ।
आधुनिक मीरा के रूप में तीव्र वेदना लेकर गीत-जगत में अवतीर्ण हुई। अदृष्ट प्रियतम के प्रति ललक, उत्कण्ठा एवं मिलन के भाव उनके मन में बने रहे, फिर भी वे विरह में डूबी रहीं ।यद्यपि महादेवी वर्मा कवयित्री के रूप में लोकप्रिय हैं, परन्तु वे एक सशक्त गद्य लेखिका भी थीं । यद्यपि काव्य में वे कल्पना के पंख लगाकर आकाशविहारिणी हैं, लेकिन गद्य में वे पथरीली और ऊबड़-खाबड़ यथार्थ की भूमि पर उतर आयी है।अत: काव्य के अतिरिक्त गद्य के क्षेत्र में भी उनकी देन कम नहीं है । कवि सूर्यकांत जी ने उन्हें हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्सवती भी कहा।
महादेवी जी का कार्यक्षेत्र
महादेवी जी ने अपना ज्यादा समय लेखन ,अध्यापन, और संपादन में लगाया। महादेवी जी प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य और कुलपति भी रही।उन्होंने सन 1923 में महिलाओं के लिए प्रमुख पत्रिका चाँद का कार्य भर संभाला।
सन 1930 में इन्होंने निहार, सन 1932 में रश्मि, सन 1934 में नीरजा तथा सन 1936 में सांध्यगीत नामक कविता संग्रह प्रकाशित किया।सन 1955 में महादेवी ने इलाहबाद में साहित्यकार संसद की स्थापना की।और पंडित इलाचंद जोशी के सहयोग से साहित्यकार का संपादन संभाला। इन्होंने महिला के विकास कार्यो तथा उनकी शिक्षा में काफी सहयोग किया ,जिसके लिए महादेवी जी को महिला मुक्तिवादी तथा समाज सुधारक भी कहा गया।
पुरुस्कार
रचनाएँ
स्वर्गवास