भगवान चित्रगुप्त

कायस्थो के पूज्यनीय देवता भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी Bhagwan Chitragupta को माना जाता है वो चित्रगुप्त कायस्थ समाज के देवता हैं। कायस्थ समाज में इनकी जयंती उत्साह के साथ मनाई जाती हैं। चित्रगुप्त पूजा कायस्थ समुदाय के द्वारा की जाती है, जो विश्व शांति, न्याय, ज्ञान और साक्षरता में विश्वास रखता है. इस पूजा को कलम दवात पूजा भी कहा जाता है, जहाँ कागज, पेन की पूजा की जाती है, इसे कायस्थ लोग अध्ययन का प्रतीक मानते है और चित्रगुप्त जी से वे समृधि की प्राथना करते है।
 चित्रगुप्त मृत्यु के देवता यमराज के सहायक कहे जाते हैं वास्तव इन्हें मनुष्य के कर्मो का हिसाब किताब रखने का कार्य दिया गया हैं यह जीवन के अंत में मनुष्य के कर्मो का हिसाब कर उसे स्वर्ग अथवा नरक में भेजते हैं
हिन्दू धारण के अनुसार मनुष्य के जीवन में बहुत से जीवन काल चलते है, जिसमें पुनर जनम का भी बहुत रहस्य जुड़ा हुआ है. ऐसा माना जाता है कि जो लोग अपने जन्मकाल के समय अच्छे कामों और बुरे कामों के बीच संतुलन नहीं बना पाते है, उन्हें पृथ्वी में किसी भी रूप में पुनर जन्म लेकर अपने जीवन काल को पूरा करना होता है. चित्रगुप्त जी का पहला कार्य यह है कि उन्हें सभी मनुष्यों के जीवन का लेखा जोखा रखना पड़ता है, मनुष्यों को उनके जीवन की अच्छाई बुराई के अनुसार जज करते है और फिर उनकी मृत्यु का समय निर्धारित होता है। श्री चित्रगुप्त जी को महाशक्तिमान क्षत्रीय के नाम से सम्बोधित किया गया है।

Chitragupta Bhagwan की दो शादिया हुई-

पहली पत्नी 

सूर्यदक्षिणा जो ब्राह्मण कन्या थी इन्हें नंदनी नाम से भी जाना जाता है। इनसे 4 पुत्र हुए जिनके नाम हैं –

  1. भानू(श्रीवास्तव)
  2. विभानू( सुर्यध्वज)
  3. विश्वभानू ( वाल्मीकि)
  4. वीर्यभानू (अष्ठाना)

दूसरी पत्नी 

एरावती नागवन्शी क्षत्रिय कन्या थी  इन्हें शोभावती नाम से भी जाना जाता है। इनसे 8 पुत्र हुए जिनके नाम है-

  1. चारु( माथुर)
  2. चितचारु( भटनागर)
  3. मतिभान( सक्सेना)
  4. सुचारु(गौर )
  5. चारुण(कर्ण)
  6. हिमवान( अम्ब्स्था)
  7. चित्रचारू (निगम)
  8. अतिन्द्रिय (कुलश्रेष्ठ)

चित्रगुप्त जयंती महत्व (Importance of Chitragupta Bhagwan Jayanti)

 ब्रह्माजी ने चार वर्णो को बनाया जो निम्नलिखित है-
  1. ब्राह्मण
  2. क्षत्रीय
  3. वैश्य
  4. शूद्र
भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल पर ब्रह्मा जी का जन्म हुआ इन्हें श्रृष्टि का सृजन करने का कार्य मिला। जिस कारण इन्होने देवी देवता सुर असुर एवम धर्मराज आदि उत्पन्न किये। इन्ही में संसार को गतिशील बनाने हेतु यमराज का जन्म किया, जिन्हें मृत्यु का स्वामी बनाया गया। इस कार्य का भार अधिक था, जिसके लिए यमराज ने एक सहायक की मांग की।
तब ब्रह्मा जी ने  हजारों  वर्षो तक तपस्या की और जब उन्होने आँखे खोली तो देखा कि “आजानभुज करवाल पुस्तक कर कलम मसिभाजनम” अर्थात एक पुरुष को अपने सामने कलम, दवात, पुस्तक तथा कमर मे तल्वार बाँधे पाया। 

तब ब्रह्मा जी ने कहा कि “हे पुरुष तुम कौन हो, तब वह पुरुष बोला मैं आपके चित्त में गुप्त रूप से निवास कर रहा था, अब आप मेरा नामकरण करें और मेरे लिए जो भी दायित्व हो मुझे सौपें, तब ब्रह्माजी बोले जैसा कि तुम मेरे चित्र (शरीर) मे गुप्त (विलीन) थे इसलिये तुम्हे चित्रगुप्त के नाम से जाना जाएगा।

और तुम्हारा कार्य होगा प्रत्येक प्राणी की काया में गुप्तरूप से निवास करते हुए  उसके  द्वारा किये गए सत्कर्म और अपकर्म का लेखा जोखा रखना और तदानुसार सही न्याय कर उपहार और दंड की व्यवस्था करना। चूंकि तुम प्रत्येक प्राणी की काया में गुप्तरूप से निवास करोगे इसलिये तुम्हे और तुम्हारी संतानो को कायस्थ भी कहा जाएगा। यही चित्रगुप्त के नाम से विख्यात हुए।

इस प्रकार अधिक मास के वर्ष में कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वीज को चित्र गुप्त का जन्म हुआ, इसलिए इसे चित्र गुप्त जयंती के रूप में प्रति वर्ष  भाई दूज के दिन मनाया जाता हैं। चित्रगुप्त एक लेखक कहे जाते हैं जो मनुष्य के जीवन का सार विस्तार लिखते हैं इनके चित्र में इनके एक हाथ में किताब हैं, जिसमे मनुष्य के कर्मो का ब्यौरा हैं, दूसरे हाथ में कलम और दवात हैं। इस तरह यह मनुष्य के कर्मो के लेखा के लिए सदैव सज्ज रहते हैं और उसके अनुसार उसकी नियति तय करते हैं ।

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